उत्तर प्रदेश में अदरक की खेती कैसे करें, बुवाई से लेकर कटाई तक जाने पूरी जानकारी।

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अगर आप उत्तर प्रदेश में अदरक की खेती करना चाहते हैं तो ये एक लाभदायक बिजनेस हो सकता है कयोकि अदरक‌ का इसतेमाल चाय से लेकर सबजी में होता है, जिसके कारण अदरक की मांग हमेशा से बढ़ी है। इसलिए अगर किसान अदरक की खेती करते हैं, तो उन्हें ज्यादा मात्रा में मुनाफा मिल सकता है। उत्तर प्रदेश में किस अदरक की खेती आसानी से कर सकते हैं, क्योंकि उत्तर प्रदेश का जलवायु अदरक की खेती के लिए सबसे अच्छा होता है। इस ब्लॉग में हम अदरक की खेती से जुड़ी सभी जानकारी जानेंगे।

अदरक की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

जलवायु

अदरक की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में सबसे अच्छी तरह होती है। इसके लिए तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस तक होता है। अधिक ठंड और गर्म से अदरक की फसल को नुकसान पहुंच सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के अधिक हिस्सों में यह जलवायु उपलब्ध होती है। खासकर पूर्वी और मध्य क्षेत्रों में, जहाँ वर्षा अच्छा होता है। गर्मी और मॉनसून के महीनों में पर्याप्त नमी अदरक की खेती के लिए आवश्यक होती है।

मिट्टी

अदरक की खेती के लिए सबसे उपयोगी मिट्टी दोमट या रेतीली दोमट होती है, जिसमें अच्छी जल निकासी होती है। मिट्टी का pH मान 6.0 से 6.5 के बीच होना चाहिए। अम्लीय या क्षारीय मिट्टी अदरक की जड़ों की वृद्धि को बढने से रोक सकती है। खेत की तैयारी के समय मिट्टी में जैविक खाद मिलाकर उसकी उर्वरता बढ़ाई जा सकती है। उत्तर प्रदेश में गंगा के मैदानों की मिट्टी, जो उर्वर और अच्छी जल निकासी वाली होती है, जो अदरक की खेती के लिए उपयोगी होते हैं।

खेत की तैयारी

मिट्टी को अच्छी तरह से जोतकर और समतल करना चाहिए। यह मिट्टी को भुरभुरा बनाता है और जल को अच्छे से खेतो में पहुंचाता है। गहरी जोताई करने से मिट्टी के कण छोटे होते हैं और जड़ें आसानी से फैलती हैं।

खेत में कार्बनिक खाद, जैसे गोबर की खाद या कम्पोस्ट, मिलाकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है। जैविक खाद मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ावा देती है, जो पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं।

खेत में बेड्स और नालियाँ बनानी चाहिए ताकि पानी की निकासी अच्छे से हो सके। बेड्स की चौड़ाई 1-1.2 मीटर और ऊँचाई 15-20 सेमी होनी चाहिए। पंक्तियों के बीच पर्याप्त दूरी रखने से पौधों की वृद्धि में सहूलियत होती है।

बुवाई

कंदों का चयन

बुवाई के लिए स्वस्थ और रोगमुक्त कंदों (राइजोम) का चयन करना चाहिए। कंदों को 3-4 सेमी गहरी मिट्टी में लगाना चाहिए। बुवाई का समय मार्च से अप्रैल तक सर्वोत्तम होता है, जब तापमान और नमी की स्थिति अनुकूल होती है।

दूरी

पंक्तियों के बीच 25-30 सेमी और पौधों के बीच 20-25 सेमी की दूरी रखनी चाहिए। इससे पौधों को ज्यादा स्थान मिलता है और वे बेहतर तरीके से बढ़ते हैं। कंदों को बुवाई से पहले 24 घंटे के लिए पानी में भिगोकर रखने से उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है।

सिंचाई

अदरक की फसल को अधिक पानी की जरूरत होती है। शुरुआती चरण में अधिक पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन फूल आने के समय पानी की मात्रा कम करनी चाहिए। सिंचाई का सही समय और मात्रा अदरक की फसल के उत्पादन और गुणवत्ता को अच्छा करता है।

बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। इस चरण में मिट्टी को हमेशा नम रखना आवश्यक है, लेकिन जलभराव से बचना चाहिए।

जब पौधे 4-5 सप्ताह के हो जाते हैं, तब पानी की मात्रा को थोड़ा कम किया जा सकता है। इस चरण में प्रत्येक 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना सही रहता है।

कटाई से पहले सिंचाई को बंद कर देना चाहिए ताकि कंदों में नमी की मात्रा नियंत्रित हो सके और उन्हें खोदने में आसानी हो।

उर्वरक और खाद

अदरक की फसल के लिए संतुलित पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। जैविक खादों का उपयोग बेहतर होता है, क्योंकि यह मिट्टी की संरचना और उर्वरता को बनाए रखता है। आप इन उर्वरकों का उपयोग कर सकते हैं।

नाइट्रोजन (N): अदरक की पत्तियों और तनों की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। इसे तीन भागों में विभाजित करके देना हैं। पहली बार बुवाई के समय, दूसरी बार 40-45 दिनों के बाद, और तीसरी बार 75-80 दिनों के बाद।

फॉस्फोरस (P): ये जड़ों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। इसे बुवाई के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए।

पोटाश (K): ये कंदों की गुणवत्ता और आकार बढ़ाने में मदद करता है। इसे भी बुवाई के समय और फिर 75-80 दिनों के बाद देना है।

जैविक खाद: गोबर की खाद, कम्पोस्ट, और हरी खाद का उपयोग करना चाहिए। यह मिट्टी की उर्वरता और जल धारण क्षमता को बढ़ाता है।

रोग और कीट नियंत्रण

रोग

पत्ती धब्बा रोग: यह रोग फफूंद के कारण होता है और पत्तियों पर धब्बे बनाता है। इससे बचने के लिए फफूंदनाशक का छिड़काव करना चाहिए।

राइजोम सड़न: यह रोग बैक्टीरिया के कारण होता है और कंदों को सड़ा देता है। इससे बचने के लिए अच्छी जल निकासी और रोगमुक्त कंदों का उपयोग करना चाहिए।

वायरल रोग: यह रोग वायरस के कारण होता है और पत्तियों को पीला करता है।इससे बचने के लिए संक्रमित पौधों को तुरंत नष्ट करना चाहिए।

कीट

फुदकन: ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं और पौधों को कमजोर कर देते हैं। कीटनाशकों का उचित उपयोग करना चाहिए।

राइजोम मक्खी: यह कीट कंदों को नुकसान पहुंचाता है। इससे बचने के लिए मिट्टी की नमी को नियंत्रित रखना चाहिए और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए।

दीमक: यह कीट जड़ों और कंदों को नुकसान पहुंचाता है। इससे बचने के लिए जैविक और रासायनिक कीटनाशकों का मिश्रित उपयोग करना चाहिए।

कटाई

अदरक की फसल 8-10 महीने में तैयार हो जाती है। कटाई का सही समय तब होता है जब पौधों की पत्तियाँ पीली होने लगती हैं और सूखने लगती हैं। कटाई से 15-20 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए ताकि कंदों में नमी की मात्रा नियंत्रित हो सके

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